लहू भरा कुम्भ
धर्म क्यों बलिदान मांगता,
कुव्यवस्था शीघ्र संज्ञान मांगता,
अफरा मे तफरी लेता, कौन हैँ ये
जो जन की जान मांगता?
बैंक, बीमारी, अब कुम्भ मे लाचारी,
लाशों की कतार सुबह-शाम मांगता,
अतिला, तैमूर, चगेज़, सीजर
मणिपुर जो शमशान मांगता l
कर्तव्य की बस रागता ,
हक़ देने से क्यूँ भागता,
ठान देता सैलाबी मंजर,
जलजले तक भी ना जागता l
विष-रस भरा कनक घट्ट जैसे,
कुम्भ सजाते हो ऎसे,
अवकात नहीं ज़ब मंजर का,
क्यों सोचते हो समंदर का?
झंडा गाड़ दोगे ऎसे-वैसे,
भेड़ों से वोट भजा लेते हो जैसे,
आत्म मुग्ध बन बैठे हो ,
बुद्धू सा बुद्धि ले तन बैठे हो l
अपनों को जलाकर जीतते हो,
लहू से उनके, जहन सींचते हो,
गोधरा, पुलवामा भूल जाते,
याद दिलाने पर भींचते हो l
रंंगे का बिल्ला बड़ा यार हैँ,
एक निपढ़ दूजा तड़ीपार हैँ,
टैक्स के संगीन साये मे,
ट्रिपल AAA की जो सरकार हैँ l
इनके जो मंत्री हैँ, बड़बोले संतरी हैँ,
ऑफिस ये कभी न जाते, हर वक्त ट्विटर चलाते,
क्या सच मे भगवान हैँ, रावण तो ऎसे ही इंसान हैँ l
मोहन 'कल्प'