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लहू भरा कुम्भ

         लहू भरा कुम्भ 

धर्म क्यों बलिदान मांगता, 
कुव्यवस्था शीघ्र संज्ञान मांगता,
अफरा मे तफरी लेता, कौन हैँ  ये
जो जन की जान  मांगता? 

बैंक, बीमारी, अब कुम्भ मे लाचारी,
लाशों की कतार सुबह-शाम मांगता,
अतिला, तैमूर, चगेज़, सीजर 
मणिपुर जो शमशान मांगता l 

कर्तव्य की बस रागता ,
हक़ देने से क्यूँ भागता, 
ठान देता सैलाबी मंजर,
जलजले तक भी ना जागता l 

विष-रस भरा कनक घट्ट जैसे,
कुम्भ सजाते हो ऎसे, 
अवकात नहीं ज़ब मंजर का,
क्यों सोचते हो समंदर का?

झंडा गाड़ दोगे ऎसे-वैसे,
भेड़ों से वोट भजा लेते हो जैसे,
आत्म मुग्ध बन बैठे हो ,
बुद्धू सा बुद्धि ले तन बैठे हो l 

अपनों को जलाकर जीतते हो, 
लहू से उनके, जहन सींचते हो,
गोधरा, पुलवामा भूल जाते,
याद दिलाने पर भींचते हो l 

रंंगे का बिल्ला बड़ा यार हैँ,
एक निपढ़ दूजा तड़ीपार हैँ,
टैक्स के संगीन साये मे,
ट्रिपल AAA की जो सरकार हैँ l 

इनके जो मंत्री हैँ, बड़बोले संतरी हैँ,
ऑफिस ये कभी न जाते, हर वक्त ट्विटर चलाते,
क्या सच मे भगवान हैँ, रावण तो ऎसे ही इंसान हैँ l 

मोहन 'कल्प' 







ram bane ghum rahe ho

 जलता रावण पूछ रहा, बता मेरी खता क्या है?

राम बने घूम रहे हो तुमलोगों में बचा क्या है ?

धू धू करके जल रहा मैं आत्मा मेरी चीत्कार रही,

तेरी बहन को छेड़े कोई तो क्या कहोगे खूब कही !


बालि को धोखे से मारे, जो रावण का घर उजाड़े,

स्वर्ण मृग के पीछे भागे उसके सौ सौ गुण बघारे!

जीत गए चुनाव ऐसे

जीत गए चुनाव ऐसे,
जंग जीत आए मगर,
खून लाठी कत्ल गोली,
ये कैसी ममता डगर?

प्रजातंत्र के मेले में कौन दिया अधिकार ऐसा,
जीत जाओ जब इलेक्शन कुकर्म करो धिक्कार जैसा।

मत भूलो चुनाव हर पांच साल में आते हैं,
कपड़ों के जैसे पार्टी बदले जातें हैं।

मार रहे हो मजलूमों को,भूख ही है धर्म जिनका,
चौपट धंधे की घड़ी में पार्टी हो ऐसा वैसा कोई भी कैसा।

लूट गई सत्ता अगर तो जनादेश की बात है,
बेटी की अस्मत लूटते हो, क्या तेरी औकात है?

राज करो तो पृथ्वी के जैसा,
गोरी क्यों बने जाते हो,
किसी राज्य को जितने पर मानव भक्षण पे उतर आते हो।

कैसे कुपुत्र ठहरे, शांति का नोबल रो रहा,
रविन्द्र हों या अमर्त्य, आंसू उनको धो रहा ।

तनिक जो आदर्श बचा,बच गई गर इंसानियत,
इस प्रलय की घड़ी में बचा लो बांग्ला की रूमानियत।
जगमोहन
दिल्ली  कुत्तेवालों की 
 
कुत्ता जो पाले वो भी कुत्ता होये 
कुत्ता मांस-मलीदा खाये, बूढ़ा  भूखा सोये 
 
दिल्ली की  बीमारी कुत्ता , MCD का सरकारी  कुत्ता 
निकम्मो को काम नहीं तो ये  हैं टहल बेकारी कुत्ता 
 
बेटे के घर में बाप है कुत्ता, ऐसे बेटे आप है कुत्ता 
बहन के घर भाई कुत्ता, ससुराल में जमाई  कुत्ता 
 
रोज़-रोज़ त्योहारी कुत्ता,बड़ा है व्यवहारी  कुत्ता 
5  हज़ार का, 15 हज़ार का, मेरा तीस  हज़ारी कुत्ता
 
दिल्ली का योग है कुत्ता, मिठाई "श्वान-भोग" है कुत्ता  
दिखावे का रोग है कुत्ता, बदबू का हठयोग है कुत्ता 
 
 
 
DDA ने कितने मनोरम एवं स्वास्थ्यवर्धक पार्क बनवाएं हैं, इन पार्क में यदि कोई पागल इंसान  शौच करे  तो  लोग  मार कर भगा  देंगे, लेकिन उन पार्कों/गलिओं/सड़कों  पर  स्वयं कुत्तो को शौच कराएँगे । 
 
उसे गेंद पकड़ना  सिखा  सकतें हैं तो टॉयलेट जाना भी सिखाएं । .... 
 
 
 
 
© सर्वाधिकार सुरक्षि-मोहन'कल्प'
 


बनना था क्या और क्या बन गया

 
 वफ़ा जिससे की बेवफ़ा हो गया,
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया |.....राना नवीन


इन हसीनों की बला ए नादाँ
तुझे बनना था क्या तू क्या बन गया
आशिकी तक तो हालात काबू में थे
दिवाना मगर तू बाकायदा बन गया

उन बेखबरों को खबर न लगी
कुदरत का तराशा इक रत्न
चर्चाएँ आम थी खूबियाँ  जिसकी
किस कदर बावला बन गया      II ....      जगमोहन " कल्प "




aaj ka hindustan

नज़र किसी की लगी ना कोई बेलज्ज़त-गुमनाम   हो गया
महत्व्कंक्षावों के लहर में  हिंदुस्ता का ऐ अंजाम हो गया

ना  हरिनाम  बचा, बेपानी रमजान हो गया
एक ही मुल्क में दो कानून,वोट बैंक बेलगाम हो गया

खालसा को भूल कोई सरदार बलवान हो गया
कोई बात तो थी जो दारा सरेआम  हो गया

भगवा रंग चढ़ाके साधू आतंक परवान हो गया
अमन पढानेवाला  गुरु  आतंकी अनजान हो गया

भिक्षाटन करनेवाला साधू  भगवन के नाम धनवान हो गया
शीघ्र धनि  होने के इस दौड़ में हर कोई बेईमान हो गया
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