तेरे मनमाफिक नज़र आयें कैसे
खुदा ने बना दी खूबसूरती, तो मन को 'न' बहकाएं कैसे ??
फूलों से न जुदा हो, तो काँटों से बच कर जाएँ कैसे ?
खुसबू हैं, तारे हैं, वादियाँ हैं, और तू कहे
तो रेत का घर, बनायें कैसे ??
भौरा मडराता न तो फूल खिलता
और तू कहे कि तुझे कुछ न करूँ तो
अपने चंचल मन को बहलायें कैसे ??
कवि हूं , बंजर में भी मंजर खिला दूँ
सख्त अपेक्षायों में तेरी, झिलमिल सी भी
नज़र आयें तो आयें कैसे ??
अपने शकल से जाहिर है, उसे छुपायें कैसे ??
तेरी मनमर्जी नज़र आयें, तो आयें कैसे ??
© सर्वाधिकार सुरक्षित-मोहन'कल्प'
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