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अभी जान बाकी है



मुझमे अभी जान बाकी है



अभी तौबा कर जालिम, तेरा मुकाम बाकी है
वफ़ा से महरूमो को कुछ पैगाम बाकी है
जो कुछ दिए है तुने उनका अंजाम बाकी है
चंद जुल्म कर खौफ खा, मुझमे अभी जान बाकी है


मुद्दते जुनू था जो सर पे, होना उनका सरेआम बाकी है
हस्ती आबदार अब तक मेरी, अभी तो नामो-निशां बाकी है
आबो-हवा तक बंद कर दे मेरी, गुनाहे कत्लेयाम बाकी है
भूल जा उनके फरियादो को, जिनका एहतराम बाकी है


चूस ले नामुराद का कतरा-कतरा, सांसों का तक्लेयाम बाकी है
आहत हो गयी वफ़ा अब तक, मोहब्बत बेजुबान बाकी है
पल के लिए छोड़ रब दा वास्ता, पलकें चूम लूँ काम बाकी है
बंद कर दिखाना हयादार है तू, तेरे लबों पे कुटिल मुस्कान बाकी है


ला रही रौनक तालीम तेरी, जाँकशी पर इम्तेहान बाकी है
थकने दे हरारत, अभी सारे हुक्मरान बाकी हैं
देख ली हश्र दुनिया ने मेरी, पर एक औरत अनजान बाकी है
मोहब्बत को काफूर बताये माँ, इस इल्म का संज्ञान बाकी है

अभी तौबा कर जालिम................

© सर्वाधिकार सुरक्षि-मोहन'कल्प'

1 comment:

एक कविता अर्थहीन ,श्याम – शवेत तथा मौन । said...

चूस ले नामुराद का कतरा-कतरा, सांसों का तक्लेयाम बाकी है
आहत हो गयी वफ़ा अब तक, मोहब्बत बेजुबान बाकी है
पल के लिए छोड़ रब दा वास्ता, पलकें चूम लूँ ए काम बाकी है
बंद कर दिखाना हयादार है तू, तेरे लबों पे कुटिल मुस्कान बाकी है

बहुत ही दिल को छुने वाली रचना है,...
उर्दु के श्ब्दों का भि बहुत अच्छा उप्योग किया हैं,
शुभकामनायें