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ख्वाहिश

ख्वाहिश


सुबह के साथ एक ख्वाहिश मांगी थी
बहुत ही छोटी फुर्माइश मांगी थी
रातों को चुमुं तेरे पलकों को
सुबह तेरे चुम्बन की आजमाईस तो मांगी थी


गोधुली में तेरी सानिध्य का साया
दिन में मेरे प्यार की गुजारिस तो मांगी थी
तमन्ना थी तेरी मीठी आवाज़ से नींद खुले
चुडिओं के खनक से तन्हाई तो नही मांगी थी


आरजू से ले लेता तेरे चुभन को
तेरे आह की परछाईं ही तो बस मांगी थी
रूठ जाती मनाता मै, जब तक खाती खाता मैं
प्रेम भवंर की शाहिल ही तो बस मांगी थी

बस..............


© सर्वाधिकार सुरक्षि-मोहन'कल्प'





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