गैरजिम्मेवार.........
पैसे की आंधी में अँधा हो गया हूँ
अक्ल में भी थोडा मंदा हो गया हूँ
रिश्ते, नाते, वफ़ा, सहानुभूति न किरदार कोई
नाहक गैर जिम्मेवार बंदा हो गया हूँ |
आये न जाए कोई क्या मतलब
काष्ठकार का कुंद सा रंदा हो गया हूँ
भटका हु दिशा न कोई मेरा
थका-थका तो हूँ पर थकों को कन्धा हो गया हूँ |
क्यों आएगी दुल्हन ?
खुश रखना होगा मन
साबुन स्नो, लाली लाऊंगा कहाँ से
अभी से सोच का चंदा हो गया हूँ |
करो न शादी मेरी अब कहे देता
मै तो घुमक्कड़ खरबंदा हो गया हूँ
लाओगे बीवी तो फिर न कहना
बीवी कही और, मै बंडा हो गया हूँ |
© सर्वाधिकार सुरक्षित-मोहन'कल्प'
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