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Budhimaan Manav

सर्वबुद्धिमान मानव


हे सर्वबुद्धिमान मानव !!

गर तू पौध लागाता नदी के तीरे-तीरे
बच्चे तेरे बैठ कन्हैया बनते धीरे-धीरे
ना होती बाढ़-विभीषिका, ना ही नीरे-नीरे
और न कहता तू कि हेलिकोप्टर से रोटी गिरे-गिरे

हे भौतिकसुखवादी गर तू पौध लागाता
ना होता चर्म- कंसर , ना विश्व गरमाता
ना लगती गर्मी तुझे, ना हिमखंड गल पाता
रहती हरियाली और भूखा ना कोई रह पाता



क्यों पिता सुख त्याग पुत्रों के लिए जीवन बिताते
यही पुत्र तो पिताओं के आयु को घटाते
काश ! पुत्र-मोह त्याग वृक्षों को उगाते
क्योंकि वृक्ष तो स्वच्छ सांसें दे उम्र को बढ़ाते

इस विरासत से बेटे भावुक बन जाएँ
बन भावुक ओ मात-पिता को न भुला पायें


गर करनी मानवता रक्षा, क्यों ना बाग़ लगायें
चिडिओं के गुंजन से चित प्रसन्न बनायें
अगर करनी समाज-सेवा क्यों ना क्यों ना पौध लगायें
एसा कर समाज-सेवा अपने आप हो जाये

जब कभी मै किसी का प्रेमी होऊंगा
ना दूंगा कनक-मोती, पौधा उसको दूंगा
क्योंकि कनक मैली हो मोती टूट जाये
पर वृक्ष तो पीढ़ियों को प्रेम दास्ताँ सुनाये

तो आओ ......
प्रण करो और पौध लगाओ
बालको को कन्हैया बना
प्रेमिका को झुला झुलाओ
मात-पिता को फल-हवा खिला
यह गुर दूसरों को अवश्य सिखलाओ


एसा कर वास्तविक सर्वबुद्धिमान कहलाओ...


© सर्वाधिकार सुरक्षि-मोहन'कल्प'

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