छलावा
बेकसी हो गयी बेबसी अब
बरकत ना रहा मैखाने में
चिलमन उठा जो मयकसी का
वो मिले किसी और पैमाने में
शमां जलती थी जो रफ्ता-रफ्ता
रौशन कर ना सका आशियाने में
इस सहर वो इस शहर मिले
शबे किसी और ठिकाने में
सादामिजाजी पे शबाबे कहर का सिलसिला
बदल ना सका, अदद जां लुटा दी हरजाने में
और कुछ नहीं फकत छलावा है ऐ मुहब्बत
मजलूम दीवाने, महरूम रहेंगे सदा, जमाने में
© सर्वाधिकार सुरक्षित-मोहन'कल्प'
1 comment:
achii hai but samajh nhi aayi ......
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